Friday, 27 March 2015

Amba

Amba



आंब्याची लज्जत न्यारी....
हापूस आंब्याची लज्जत न्यारी
एकदाच खाल्ला पण किमतीला भारी......१

पायरी आंबा गोडच गोड
खावी त्याची निदान एक तरी फोड......२



नावाने जरी आंबा लंगडा
तरी तब्येतीने आहे चांगलाच तगडा....३

कच्च्या आंब्याचा नखराच भारी
लोणचे त्याचे घरोघरी....४

दशेरी आंब्याला नाही तोड़
रस त्याचा भारीच गोड....५

बेगमपल्लिने केली सर्वांवर ताण
गरीबाच्या घरी त्याचाच मान...६



चवीला पाणचट आंबा तोतापुरी
एकदाच खाला अन म्हणाल दहादा सॉरी...७

वटपौर्णिमेला रायवळ आंब्याचा मान
त्याविना अपुरे सुवासिनिचे वाण....८

संपला आंब्याचा मोसम जरी
नीलम दिसतो घरोघरी......९

आंब्याच्या रसाला पंचपक्वान्नाचा मान
चांदीच्या वाटीत त्याचे स्थान....१०

आंब्याच्या फळाला राजाचा मान
सगळी फळे करती त्यालाच सलाम....११





आंब्याच्या आहेत हजारो जाती
कोकीळ पक्षी त्याचेच गुण गाती ....१२

संपले आमचे आंब्याचे गाणे
पण त्याआधी घ्या थंडगार पन्हे....१३

Tuesday, 24 March 2015

पतीचे श्लोक

पतीचे श्लोक
 

मना सज्जना केर वारे करावे
पहाटे भल्या रोज पाणी भरावे
धुवावी अशी घासघासून लादी
पसारा नको आवरा नीट गादी

मना सज्जना तोच राणी उठावी
तिची त्याक्षणी जीभ वेगे सुटावी
चहा पाजुनी थंड डोके करावे
पती चांगला नाव ऐसे मिळावे


त्वरेने पुन्हा भात पोळी करावी
विळी घेउनी योग्य भाजी चिरावी
डबा रोजचा एक जैसा नसावा
शिरा न्याहरीला जरूरी असावा

प्रभाते मनी बायकोला भजावे
तरी स्वल्प पैसेच खर्चा मिळावे
पगारास हाती तिच्या सोपवावे
कमावून जास्ती तिला तोषवावे


तिचे पाय रात्री जरासे चुरावे
माका तेल ते चोळुनी जे मुरावे
निजायास गादी उशी शाल द्यावी
अशी चाकरी नित्य संपन्न व्हावी

नको रे मना बोल ते बायकोचे
असे की जणू बाण छातीत टोचे
तिच्या ह्या जिव्हा कोण घाले लगाम
अश्या शूरवीरा हजारो सलाम


अशी बायको ही कशी आवरावी
तिची भ्रष्ट बुध्दी कशी सावरावी
कुणी थोर तो काय सांगेल युक्ती
तया पावलांची शिरी लावु माती

कसा जीवघेणा अघोरीच त्रास
सुखाचा ठरे त्यापरी स्वर्गवास
तुम्हा सांगतो नीट ध्यानी धरावे
मरावे परी लग्न कधी न  करावे

- जय जय पतीवीर समर्थ...

Sabki zindagi badal gayi

Sabki zindagi badal gayi


सबकी जिंदगी बदल गयी
एक नए सिरे में ढल गयी

कोई gilfriend में busy है
कोई बीवी के पीछे crazy हैं



किसी को नौकरी से फुरसत नहीं
किसी को दोस्तों की जरुरत नहीं

कोई पढने में डूबा है तो
किसी की दो दो महबूबा हैं

सारे यार गुम हो गये हैं
तू से आप और तुम हो गये हैं

कोई hello बोल कर formality करता हैं
कोई बात न करने के लिए guilty करता हैं

वक़्त वक़्त की बात है:



किसी ने number save नहीं किया
किसी ने अजनबी सा behave किया

माना के अब हम साथ नहीं हैं
पर चुप चुप रहने की भी कोई बात तो नहीं है

कभी मिलो तो बोल लिया करो
बंद गांठो को खोल लिया करो



शिकायत हो तो दूर करो यारो
पर एक दूसरे से दूर तो न रहो ..

इस दोस्ती को युँ ही बनाये रखना
दिल में यादों के चिराग जलाये रखना

बहुत प्यारा सफ़र रहा है यारों अपना, इसे बस यूँ ही हमेशा
बनाये रखना

Culture Bighad Gaya

Culture Bighad Gaya


गाय  हमारी 
 COW बन गयी, 

                    शर्म हया अब
                  WOW बन गयी,

  काढ़ा  हमारा 
CHAI बन गया, 

                     छोरा बेचारा 
                   GUY बन गया,



    योग हमारा 
 YOGA बन गया, 

                     घर का जोगी 
                  JOGA बन गया,

 भोजन 100 रु. 
PLATE बन गया, 

         ..हमारा भारत 
       GREAT बन गया..


  घर की दीवारेँ
 WALL बन गयी, 

          दुकानेँ 
SHOPING MALLबन गयीँ,

                        गली मोहल्ला
                    WARD बन गया, 

    ऊपरवाला 
LORD बन गया,  

  माँ हमारी
 MOM बन गयी, 


                             छोरियाँ 
        ITEM BOMB बन गयीँ,

  तुलसी की जगह
 मनी प्लांट ने ले ली..!

                    चाची की जगह 
                    आंटी ने ले ली..!

पिता जी  डेड हो गये..!  
           भाई तो अब ब्रो हो गये..! 
         बेचारी बेहन भी अब 
          सिस  हो गयी..!

     दादी की लोरी तो अब
     टांय टांय फिस्स हो गयी..!

टी वी के सास बहू में भी
 अब साँप नेवले का रिश्ता है..!
                पता नहीं एकता कपूर
           औरत है या फरिश्ता है..!!!



   जीती जागती माँ बच्चों के
      लिए ममी हो गयी..!

        रोटी अब अच्छी कैसे लगे
 मैग्गी जो इतनी यम्मी हो गयी..!

गाय का आशियाना अब
      शहरों की सड़कों पर बचा है..!

             विदेशी कुत्तों ने लोगों के
   कंधों पर बैठकर इतिहास रचा है..!

    बहुत दुखी हूँ ये सब देखकर
          दिल टूट रहा है..!

      हमारे द्वारा ही हमारी
      भारतीय सभ्यता का 
       साथ छूट रहा है.....  

झकास कविता

झकास कविता


सुखांमागे धावता धावता
विवेक पडतो गहाण
पाण्यात राहूनही माशाची मग
 भागत नाही तहान  

स्वप्न सत्यात आणता आणता 
दमछाक होते खूप
वाटी-वाटीने ओतलं
तरी कमीच पडत तूप 




बायको आणि पोरांसाठी
चाले म्हणे हा खेळ
पैसा आणून ओतेन म्हणतो
पण मागू नका वेळ

करिअर होतं जीवन मात्र
जगायचं जमेना तंत्र
बापाची ओळख मुलं सांगती
पैसा छापणारं यंत्र 



 चुकून सुट्टी घेतलीच तरी
पाहुणा 'स्वतःच्या घरी'
दोन दिवस कौतुक होतं
नंतर डोकेदुखी सारी 

 मुलच मग विचारू लागतात
बाबा अजून का हो घरी?
 त्यांचाही दोष नसतो
त्यांना याची सवयच नसते मुळी 



 सोनेरी वेली वाढत जातात
घरा भोवती चढलेल्या ,
आतून मात्र मातीच्या भिंती
कधीही न सारवलेल्या 

आयुष्याच्या संध्याकाळी मग
एकदम जाणवू लागतं काही,
धावण्याच्या हट्टापायी आपण श्वासच मुळी घेतला नाही 
सगळं काही पाहता पाहता
आरशात पाहणं राहून गेलं
 सुखाची तहान भागवता भागवता
समाधान दूर वाहून गेल